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English to Hindi translations [PRO] Medical - Medical (general)
English term or phrase:rashes
Common skin rashes include poison ivy, hives, shingles, eczema etc. A rash is change of the skin which affects its colour, appearance or texture. A rash may be localized in one part of the body, or affect all the skin.
चलिए, खत्म करते हैं, बस एक बात क्योंकि आपने छेड़ी है तो...
वैसे संदर्भ से बाहर है लेकिन आपने उल्लेख किया है फ़र्जी प्रोफ़ाइलों और कुडोज़ एवं अनुवाद प्रतियोगिताओं का, तो मुझे भी मिनी प्रतियोगिता में शक हुआ था। मुझे लगा एक बहुत अच्छी प्रविष्टि जो मुझे लगती थी, शुरू के राउंड में ही बाहर हो गई। मैंने सपोर्ट टिकट जमा कराया और शक जाहिर किया मिलीभगत का। कुछ दिन बाद उन्होंने कहा कि जांच कर ली और ऐसा कुछ भी नहीं है।
आपको भी ऐसा ही करना चाहिए, जब शक हो। यहां कहने से कुछ नहीं होगा।
और ललित भाई ... जब मैं इस कुडोज़ का उत्तर देने वाला था ... तो मुझे 2 बार हिचकिचाहट हुई थी क्योंकि यह भी एक नई प्रोफाइल थी ... और यहाँ लोग धारणा बहुत जल्दी बना लेते हैं ... मगर आजकल मुझे लगता है ... लोग अपनी वास्तविक प्रोफाइल से प्रश्न पूछने में शर्मंदगी महसूस करते हैं...इसलिए यह तो चलता रहेगा.... पर प्रोज पर विश्वास रखें, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि प्रोज इतना ढीला है कि आई.पी. की भी जांच न करता हो ...
वैसे, मेरी टिप्पणी का कुडोज़ प्रतिस्पर्धा से कोई लेना-देना नहीं था। हालांकि वस्तुस्थिति तो यह भी है कि प्रोज़ डॉट कॉम पर कुडोज़ से लेकर अनुवाद प्रतियोगिता तक में फ़र्जी प्रोफ़ाइल के सहारे विजयी होने की तमाम कोशिशें हुई हैं। लेकिन मुझे यह सब बहुत तुच्छतापूर्ण लगता है।
मेरा अपना मानना है कि कुडोज़ में यदि कुडोज़ नियमों के अंतर्गत कोई प्रश्न आ रहा है तो उत्तर देना ही चाहिए। परंतु फ़र्ज़ी प्रोफ़ाइलों वाली तीन-तिकड़मों से दूर ही रहना अच्छा। स्वयं अपनी बात करूं तो कुडोज़ मंच पर भागीदारी मुझे वर्ग-पहेली हल करने जैसा आनंद देती है। स्वतंत्र अनुवादक के तौर पर पूरा दिन यदि कोई गुजारता हो तो वह ऐसी "वर्ग-पहेलियों" से मिटने वाली बोरियत को समझ सकता है। अपने इस सुख या कहूं मौज के लिए मैं यहां सदैव तत्पर रहता हूं ;)
आप सभी को हजारी प्रसाद द्विवेदी की वर्ष 1901 में प्रकाशित कविता के एक दो अंश सुनाता हूं। शब्द-शास्त्र है किसका नाम ? इस झगड़े से जिसे न काम, नहीं विराम-चिह्न तक रखना जिन लोगों को आता है इधर-उधर से जोड़-बटोर, लिखते हैं जो तोड़-मरोड़, इस प्रदेश में वे ही पूरे ग्रन्थकार कहलाते हैं।
उन्होंने यह भी लिखा - शुद्धाशुद्ध शब्द तक का है जिनका नहीं विचार, लिखवाता है उनके कर से नए-नए अख़बार।
और, ललित जब ऐसे ही अनुवादक कुडोज़ की ट्रेन लेकर हमारे सामने पहुंचते हैं, तो हम गाड़ी रुकने का भी इंतजार नहीं करते; कूद पड़ते हैं चलती गाड़ी में ही, सबसे पहले ज़वाब देने के लिए!! है कि नहीं? क्या ऐसे अनुवादकों को हम ही बढ़ावा नहीं देते, जो प्रश्न भी सही हिंदी में पूछने की कूवत नहीं रखते?? तब हम पलकें बिछाकर उनका स्वागत करते हैं। लेकिन, समस्या शायद तब होती है जब ऐसे लोग कुडोज़ में हमारे ही प्रतिद्वंदी बन जाते हैं। अगर हमने पहले उनका स्वागत किया था तो अब भी उनके प्रति सहिष्णु बने रहें।
टिप्पणी: उपर्युक्त बातें किसी भी तरह हरमन को लेकर नहीं हैं। मेरे विचार में, हरमन काफी योगदान हिंदी के कुडोज़ में देते हैं और स्रोत को अच्छी तरह समझते हैं।
हरमन जी माफ़ कीजिएगा यदि भूलवश कोई बात ग़लत अर्थ प्रकट कर रही हो। "हिंदी अनुवाद में आज ऐसे भी अनुवादक सक्रिय हैं जो एक पूरा वाक्य शुद्ध नहीं लिख सकते हैं" को आप कहीं स्वयं पर आरोपित कर तो नहीं देख रहे हैं। मैंने तो एक व्यापक संदर्भ लेकर वह बात कही है। यह कोई निजी टिप्पणी नहीं है, एक सामान्य कथन है। क्या हम सभी नहीं जानते कि हिंदी का क ख ग तक नहीं जानने वाले भी हिंदी अनुवादक बने हुए हैं। ऐसे लोगों की वजह से वर्तमान संदर्भ से लेकर मार्केट ख़राब होने तक की स्थितियां पैदा हुई हैं। ऐसे उदाहरणों से हम रिव्यू करते समय कभी-न-कभी दो-चार होते ही हैं।
यहां डिस्कशन एंट्री पोस्ट करते समय वर्तनी त्रुटि की संभावना तो आम बात है।
सर, अपन तो आपके शागिर्द हैं। गुरु पर वार कैसे कर सकते हैं? [यह और बात है कि रामविलास शर्मा की तमाम प्रस्थापनाओं से सहमति नहीं बन पाती है ;) ]
दरअसल चर्चा अमूर्तन की ओर जा रही थी तो लगा ज़मीनी हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश की जाए।
बाला जी, हिंदी भाषा की अपनी समस्याएं हैं। चाहें भी तो इन्कार नहीं कर सकते हैं। "शब्दकोश से शब्द उठा-उठाकर रख देने भर" का मैं हामी नहीं, लेकिन शब्दकोशों की महत्ता को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता।
भाषा के अपने मानक होने ही चाहिए। भाषा के कारीगरों को बोलचाल के शब्दों की सीमा का अतिक्रमण कर नए शब्द भी गढ़ने चाहिए। शब्दकोशों से मशविरा लेना चाहिए। इन व ऐसी अनेक बुनियादी बातों की उपेक्षा का ही परिणाम है कि हिंदी अनुवाद में आज ऐसे भी अनुवादक सक्रिय हैं जो एक पूरा वाक्य शुद्ध नहीं लिख सकते हैं।
बातें बहुत हैं, पर अब एक अनुवाद में जुटना है, जिसमें लोलक, दोलन, आवर्तकाल जैसे शब्द हैं। शब्दकोश मेज पर रख दिया है। काश बिना शब्दकोश के ही इन सब शब्दों का अनुवाद कर पाने की क्षमता से मैं भी लैस होता!
ललित जी यहाँ जो प्रश्न-कर्ता सुनना चाहते हैं .... अनुवादक वही शब्द सुझाते हैं आप ने चर्चा इस बात से शुरू की, कि भारत सरकार के शब्दकोश का इस्तेमाल कमर्शियल अनुवादक क्यों नहीं करते .... स्वयं की शब्दावली क्यों इस्तेमाल करते हैं (अपनी ढपली, अपना राग)
मैंने आपको एक मिसाल हेतु यह दर्शाने कि कोशिश की है भारत सरकार का शब्दकोश पत्थर पर लकीर नहीं है .... जरूरत के अनुसार आपको इसमें सम्पादन करना ही पड़ेगा
वार वज़नदार था ललित जी, तिलमिला उठा! पर ये शब्द वही सूझबूझ वाली बात की ही पुष्टि करते हैं। ये सब शब्द सुझाए गए थे, पर अनुवादक ने अपनी समझ, आदि के अनुसार चयन किया और प्रयोग किया। इनमें से किसी भी सुझाव को अंतिम या "पत्थर पर खुदा हुआ" नहीं माना जा सकता है। कुडोज़ है ही ऐसी चीज़, इसमें कई सुझाव आते हैं, कुछ उचित, कुछ अनुचित, कुछ हास्यास्पद, और पूछनेवाला अपनी ज़रूरत के अनुसार, या समझ के अनुसार, चयन करता है। शब्द कोश की बात अलग है, वह अंतिम सुझाव रखता है। इसलिए, मेरे विचार से ज़मीनी बहस तो वह होगी जो असली अनुवाद में शब्द प्रयोग पर होगी, न कि कुडोज़ में दिए गए उत्तरों पर। यहाँ आपको मानना पड़ेगा कि शब्दकोश से शब्द उठा-उठाकर रख देने भर से अच्छा अनुवाद नहीं बनता है, सूझबूझ से शब्द-चयन करना ही पड़ता है।
इस चर्चा को क्यों न थोड़ा ज़मीनी ढंग से देखा जाए। मान लीजिए मैं शब्दकोशों का प्रचंड समर्थक सही। आइए "अपनी समझ" के समर्थक अनुवादकों द्वारा सृजित शब्दों पर एक नज़र डालें
मुँह भांड-चित्ति , ड्यूल द्रश्य द्वितीयक, पण्य व्यापार, पूर्व-अर्बुदीय विक्षतियाँ, ऋुजु धाव, मेरुरज्जु पुश्च्छ परिलक्ष ........ सूची लंबी है, पर अभी इतना ही।
ये शब्द आसानी से "95 प्रतिशत लोगों" की समझ में आ जाएंगे ना, हरमन जी?
माफ़ कीजिएगा, समझ हवा में नहीं पैदा होती। अनुवादक को शब्दकोश देखने ही होते हैं। उस भाषा के साहित्य का अध्ययन करना होता है। शब्द भंडार में तभी अभिवृद्ध होती है। यह मेरा मानना है। अपनी "समझ" "अपनी सूझबूझ" बढ़ाने का कोई हकीम लुकमानी नुस्ख़ा हो तो मुझे नहीं पता। लकीरों का फकीर मैं नहीं, मैंने पहले भी स्पष्ट किया है। उदाहरण देकर बताया है कि मैं किस प्रकार शब्दकोशों का प्रयोग करता हूं।
बहरहाल, शब्दकोशों की उपादेयता के अंत की घोषणा न तो मुझे उचित जान पड़ती है और न ही अपनी इतनी समझ है कि अपनी समझ से ही हवा में नए शब्द पैदा कर दूं।
इसके इलावा शब्दकोश के लिए "subscribe" "signup" and "Register" जैसे शब्द... एक ही हैं ... बल्कि तकनीकी भाषा में इनमें जमीन आसमान का फर्क है अब यहाँ शब्दकोश काम करेगी कि समझ?
ललित जी ! अपने जैसे शब्दकोश का भव्य रूप से समर्थक होने की बात की है तो मैं माफ़ी चाहूँगा.... अगर आप "सब्सक्राइब" के लिए (वेबसाइट के सन्दर्भ हेतु ) दिए गए किसी भी शब्द का इस्तेमाल करेंगे .... तो मुझे नहीं लगता कि 5 प्रतिशत लोगों को भी यह समझ में आयेगा ! इसलिए अनुवाद में ... शब्दकोश की बजाय अपनी समझ को साथ में लेकर चलना ज्यादा जरूरी है
मेरे विचार से हर अनुवादक के पास यह प्राधिकार तो होता ही है कि वह सही शब्द चयन करे, भाषा की अपनी समझ, विषय की आवश्यकता, लक्ष्य-समूह की क्षमता, आदि के अनुसार। यदि ऐसा न हो, तो अनुवाद महज एक यांत्रिक काम रह जाएगा जिसे कोई भी मशीन शब्दकोशों के सहारे कर सकेगा। शब्दकोश आदि अनुवादक की मदद और मार्ग-दर्शन करने के लिए ही हैं, वे कोई पत्थर पर खुदी लकीरें नहीं हैं, जिनसे इधर-उधर होना ज़ुर्म होता है। नुक्ते के संबंध में मेरी राय भी बदली है। पहले किशोरीदास वाजपेयी की सम्मति को शिरोधार्य मानकर मैं नुक्ते का प्रयोग नहीं करता था, पर मैंने देखा कि हिंदी की रुझान इसके प्रयोग की ओर है और अब मैं भी यथा-समझ नुक्ते का प्रयोग करता हूँ। इसी तरह एक समय था जब मैं अखबारों की देखा-देखी चंद्रबिंदु का प्रयोग नहीं करता था, पर अब इसे हिंदी की मूल प्रवृत्ति के अनुकूल समझकर मैं चंद्रबिंदु का प्रयोग करने लगा हूँ। इस तरह मैंने इन दो मामलों में अपने प्राधिकार (सूझबूझ) का प्रयोग किया है।
संस्कृतनिष्ठ हिंदी के बजाय मैं "हिंदुस्तानी" का समर्थक हूं। नुक्ते का भी। आज नहीं, काफी पहले से। पर जब अनुवाद की बात आती है तो मैं अपने को संकटग्रस्त पाता हूं। हमेशा मदद के लिए फ़ादर बुल्के, बाहरी व सरकारी शब्दकोशों की शरण में जाता हूं।
मैंने कृषि यंत्र संबंधी एक मैनुअल का अनुवाद किया। शायद ही कोई ऐसा शब्द हो जिसे मैंने सरकारी शब्दावली में न देखा हो। लेकिन अनुवाद में लिया उन्हीं शब्दों को जिन्हें मैकेनिक समझ सके। बाकी सारे अंग्रेज़ी के शब्द लिप्यंतरित। एक और उदाहरण। विज्ञान के एक क्षेत्र में कार्यरत एक सरकारी संस्थान के वार्षिक प्रतिवेदन का अनुवाद किया। इसमें सारे पारिभाषिक शब्द "सरकारी शब्दकोशों" से लिए। संस्थान को वैसा ही अनुवाद चाहिए था।
अपना कोई ऐसा स्थापित प्राधिकार यानी अथॉरिटी नहीं है कि मानक स्वयं को मान लिया जाए। यानी अब कोई मानक नहीं तो हम ही मानक हैं। शब्दकोशों के पास जाने के अलावा क्या रास्ता है? जो भी हैं, जैसे भी हैं।
सरकारी (और अन्य हिंदी शब्दकोशों) की एक अन्य खामी की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा। विभाजन की राजनीति भी इनमें काफी हद तक घुस गई है - वही हिंदी-उर्दू का झगड़ा। आम आदमी अपनी बोलचाल में अनेक सरल उर्दू शब्दों का प्रयोग करता है, पर कोश-निर्माताओं ने जान-बूझकर इन्हें अलग रखा है। इस कारण से हिंदी में शब्दावली एक दुहरे मार्ग पर चल रही है - एक ओर आसमान है, तो दूसरी ओर आकाश (सड़क-मार्ग, पानी-जल, भोजन-खाना...)। गनीमत है कि आजकल अखबारी लेखन में ये दोनों राहें एक बार फिर मिल रही हैं और उनमें हिंदी-उर्दू का वैसा फर्क नहीं किया जाता है जैसा शुद्ध हिंदी के हामी करते हैं। पर यह हवा कोशों को अब तक छू नहीं सकी है।
यह चर्चा पित्तिका शब्द को लेकर नहीं है ललित। यह जरूर सरल और बोलचाल का शब्द है और जब आपने यह चर्चा शुरू भी नहीं की थी तब मैं उस पर सहमति दर्ज करा चुका था।
एक सिंहावलोकन करूँ तो यहीं इसी मंच पर मैंने कभी संस्कृतनिष्ठ दुरूह हिंदी का न तो समर्थन किया है और न ही भारी-भरकम शब्दों के प्रति कठमुल्लापन प्रदर्शित किया है। सारे कुडोज़ प्रश्न गवाह हैं, सिवाय उन प्रश्नों के जहां प्रश्नकर्ता ने "विशुद्ध हिंदी" का आग्रह किया हो। मैं अन्य साथियों के उत्तरों की भी एक बानगी यहां प्रस्तुत कर सकता हूं, लेकिन उससे चर्चा किसी और दिशा में चली जाएगी। फिर मैंने इस प्रश्न को क्यों उठाया? विगत कुछ समय से मैंने पाया है कि एक प्रवृत्ति बढ़ी है कि जनता क्या समझती है, हमीं को पता है, शब्दकोशों की कोई आवश्यकता नहीं, सरल से सरल लिखो। जहां संस्कृतनिष्ठ दुरूह शब्द अपनाना एक छोर है तो दूसरा छोर यह सरलीकरण है।
इसलिए सोचा कि अन्य साथियों को भी इस बारे में चर्चा हेतु आमंत्रित किया जाए।
अपनी बात की शुरुआत में ही मैंने "सरल शब्दों" का उल्लेख किया है। एक शब्द के उदाहरण में भी उसी सोच को सामने रखा है। मुझे नहीं पता था कि पित्तिका मुश्किल शब्द है। पित्त उछलना, पित्ती हो जाना ये तो आम बोलचाल के शब्द हैं।
बात यही है बाला जी। समझ में आने वाले शब्दों को लेकर मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन ऐसे शब्दों को लेकर विरोध है जिन्हें 18 साल के अनुभव वाला अनुवादक भी न समझ पाए।
दूसरी ओर, मैं पीछे किसी प्रश्न पर हुई चर्चा में स्पष्ट कर चुका हूं कि पाठ्यपुस्तकों में ऐसे कठिन शब्द लिए जा सकते हैं क्योंकि समझाने के लिए अध्यापक होते हैं और फिर छात्र वर्ष-दर-वर्ष उनका अर्थ समझ जाते हैं। लेकिन एक आम व्यक्ति, मैकेनिक, आदि के लिए इस तरह के दुरूह शब्दों का इस्तेमाल ठीक नहीं है।
विकीपीडिया में भी आयोग की कार्यशैली पर एक टिप्पणी देखें: शब्दावली निर्माण-नीति ............. विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि ७० प्रतिशत समानक संस्कृत मूलक थे, २० प्रतिशत अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली से लिप्यंतरित और १० प्रतिशत से कम क्षेत्रीय हिन्दी शब्द थे। यह स्थिति स्नातक स्तरीय शब्दावली की थी, जबकि स्नातकोत्तर स्तरीय शब्दावली में, अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का प्रयोग अपेक्षाकृत बहुत अधिक है।
यह विषय इतना विस्तृत है कि पृथक से शोध का विषय है फिर भी इतना कहा जा सकता है कि इस प्रक्रिया में 'हिन्दी के विकासोन्मुख स्वरूप' पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। वाष्पपरिकोष्ठित, चलतुल्यावयवता, वैदयुरौप्यरंजन, वैयुतनिकेलरंजन, आश्लेष्य विवक्रमण बिन्दु आदि शब्दों से बचना ठीक रहेगा। यहाँ भाषिक शब्दावली की समस्याओं पर विचार करना अपेक्षित नहीं है फिर भी एकरूपता तथ
सरकारी शब्दकोश तैयार करते समय सोच-विचारकर आ मबोलचाल के शब्दों को परे रखा गया था और उन सबके लिए संस्कृत के शब्द गढ़े गए थे। यह इन शब्दकोशों की मुख्य खामी है। जब ये शब्दकोश सर्वप्रथम प्रकाशित हुए थे, अनेक हिंदी विद्वानों ने इस बात को लेकर उनकी खूब खिल्ली उड़ाई थी - देखें डा. रामविलास शर्मा की समीक्षाएँ। एक उदाहरण मुझे याद आ रहा है जो उन्होंने दिया था - nerve के लिए इन शब्दकोशों में तंत्रिका शब्द गढ़ा गया है। डा. शर्मा पूछते हैं कि हिंदी के आम प्रचलित नस शब्द में क्या कमी है जो इसके लिए जीभ की कसरत करवाने वाले तंत्रिका जैसे शब्द की आवश्यकता पड़ गई? उनका सुझाव था कि शब्दकोश तैयार करने से पहले देशी कारीगरों, किसानों, दुकानदारों आदि से पूछना चाहिए था कि उनके आसपास की सैकड़ों चीजों के लिए वे क्या शब्द इस्तेमाल करते हैं और इनका संग्रह किया जाना चाहिए था। इसके बजाए शब्दकोश निर्माण टीम ने संस्कृत के आधार पर कृत्रिम शब्द गढ़ने का आसान रास्ता चुना। खैर, ये बातें अब आज प्रासंगिक नहीं रह गई हैं, पर इनके कारण सरकारी शब्दकोशों की उपयोगिता ज़रूर घटी है। हाँ उनमें बहुत से अच्छे शब्द हैं, पर इन शब्दकोशों को लेकर कठमुल्लापन चलाना मेरी दृष्टि में बुद्धिमानी नहीं है।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के शब्दकोशों में दिए गए (दुरूह) शब्दों का प्रयोग (सरल शब्दों का प्रयोग ठीक है) कोई कमर्शियल अनुवाद में क्यों करेगा? मुझे ऐसी उम्मीद करना आश्चर्यजनक लगता है। क्या ये शब्दकोश कमर्शियल अनुवाद को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं?
यह तो सही है कि एकमात्र शब्दकोश डॉट कॉम पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता, लेकिन यह बात हिंदी की तकनीकी शब्दावलियों पर भी उतनी ही लागू है। शब्दकोश डॉट कॉम में कई शब्द कमर्शियल अनुवाद के हिसाब से बहुत काम के होते हैं जो दूसरी जगह मिलते भी नहीं। मैंने पाया है कि इसमें विगत 5-7 वर्षों में निरंतर उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसमें कुछ खामियां भी हैं, मैं मानता हूं, लेकिन खूबियां भी बहुत हैं। अंधभक्ति किसी भी शब्दकोश की नहीं हो सकती लेकिन अहसान जरूर माना जाना चाहिए। शायद बहुत से लोग बहुतायत में इसका प्रयोग करते हैं।
हिंदी के लिए अधिक नुकसानदेह प्रवृत्ति वह थी जिसमें उसे विज्ञान और तकनीकी विषयों में जीवित करने के चक्कर में संस्कृत की ओवरडोज पिला दी गई और इस तरह और भी घायल अवस्था में पहुंचा दिया गया। वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के शब्दकोशों में ऐसे शब्दों की भरमार है। इस तरह हिंदी आगे बढ़ेगी या ठहरेगी? कमर्शियल अनुवाद अधिकांशतः ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बात पहुंचाने के उद्देश्य से कराए जाते हैं।
हरमन जी, आयोग की पचासों शब्दावलियां हैं संदर्भ के अनुसार जिन्हें देखा जाना चाहिए। बहुत मेहनत से बनी हैं। मेरे जैसे अनुवादकों के लिए तो बहुत काम की हैं। हो सकता है विद्वानों को इन्हें देखने की आवश्यकता न पड़ती हो। एक सज्जन बता रहे थे कि पिछले तीन वर्ष से अनुवाद कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक एक भी शब्दावली नहीं खरीदी है। ऐसे भी प्रतिभाशाली लोग हैं।
बहरहाल, आपकी सेवा में आयोग की एक शब्दावली से subscribe के समानार्थी प्रस्तुत हैं -
1. चंदा या शुल्क देना 2. ग्राहक बनाना 3. अभिदान करना 4. समर्थन करना, सहमत होना 5. हस्ताक्षर करना
न पत्थर की लकीर कुछ होती है और न ही इस दावे में कोई दम होता है कि लोगों को क्या समझ में आता है, हमें ही पता है।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग में "subscribe" शब्द का अनुवाद 1. समर्थन करना; सहमत होना 2. हस्ताक्षर करना 3. नीचे लिखना ......... दिया हुआ है ! तो मुझे आप खुद बताएं .... आप इन शब्दों के साथ कितने सहमत हैं...?? My simple point being...! Its just a another human Dictionary... तो यह कोई पत्थर पे लकीर नहीं है... कि जो यहाँ लिखा हुआ है वो लोगों को समझ में आयेगा
यह एक आश्चर्य की बात है कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार के शब्दकोशों में दिए गए शब्दों का, यहां तक कि सरल शब्दों का भी, प्रयोग कमर्शियल अनुवाद में लगे बहुतेरे हिंदी अनुवादक ही नहीं करते। अपनी ढपली, अपना राग। शब्दकोश डॉट कॉम और स्वयं की शब्दावली से ही काम चला लेने की यह अराजक प्रवृत्ति हिंदी के लिए बहुत नुकसानदेह है।
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लाल चकत्ते/ चकत्ते
Explanation: फुन्सी
Harman Singh India Local time: 04:37 Specializes in field Native speaker of: Punjabi, Hindi