The winning entry has been announced in this pair.There were 3 entries submitted in this pair during the submission phase. The winning entry was determined based on finals round voting by peers.Competition in this pair is now closed. |
जिस समय माँ ने स्ट्राउड स्थित उसके छोटे से घर में कदम रखे और उसके चार छोटे-छोटे बच्चों की जिम्मेदारी संभाली, तब उनकी उम्र तीस वर्ष थी और वह अभी भी अत्यंत आकर्षक थीं। मेरा अनुमान है कि वह ऐसे व्यक्ति से पहले कभी नहीं मिली होंगी। कुछ दम्भी, इस युवा व्यक्ति की कट्टर कुलीनता, उच्चवर्गीय हाव-भाव, संगीत व महत्वाकाँक्षा, आकर्षण, होनहार बातचीत, और उसके दोष-रहित रूप-रंग से वह पहली ही नज़र में अभिभूत हो गईं। अतः उन्हें तुरंत ही इस व्यक्ति से प्रेम हो गया, जो उनके हृदय में हमेशा बना रहा। और, स्वयं भी चारु, कोमलहृदय और अत्यंत स्नेहशील होने के कारण उन्होंने मेरे पिता को भी आकर्षित कर लिया। और, इस तरह मेरे पिता ने उन से विवाह किया। और, इसी तरह पिताजी ने उन्हें बाद में छोड़ भी दिया - जब वे अपने बच्चों व माँ के कुछ और बच्चों को छोड़कर चले गए। पिताजी के जाने के बाद, माँ हमें गाँव ले आईं और प्रतीक्षा करने लगीं। उन्होंने तीस वर्ष तक प्रतीक्षा की। मुझे नहीं लगता, माँ कभी समझ पाई होंगी कि पिता जी ने उन्हें क्यों छोड़ा था, यद्यपि कारण स्पष्ट जान पड़ते थे। उस डरे-सहमे व्यक्ति के विपरीत, वह एकदम निष्कपट और सहज प्रकृति की थीं; उसके बनावटी नियमों से कोसों दूर। आखिर वह एक देहाती लड़की थी; अव्यवस्थित, भावुक और स्नेही। वह तो अल्हड़ और नटखट थी, उस प्रजाति की चिड़िया की भांति, जो चिथड़ों और चमकीली वस्तुओं को इकट्ठा कर घोंसला बनाती है, धूप को देखकर प्रफुल्लित हो उठती है, खतरा भाँपने पर तीव्र चीत्कार करने लगती है, ताक-झाँक जिसके स्वभाव में है, कभी न शांत होने वाला कुतूहल लिए रहती है, कभी भोजन करना भूल जाए तो कभी पूरे दिन खाती रहे, और सूर्यास्त की लाली देखकर गाने लगे। वह सीधे व सरल नियमों में विश्वास रखती थीं और मानव मात्र से प्रेम करती थीं। योजनाएं बनाना उनके स्वभाव में न था, प्रकृति के चमत्कारों के प्रति वह पवित्र और तीक्ष्णदृष्टि रखती थीं और आजीवन साफ-सुथरा घर बनाए रखने के लिए वह नहीं बनी थीं। लेकिन, मेरे पिता की आकाँक्षाएं एकदम भिन्न थीं, ऐसी आकाँक्षाएं जिन्हें वह कभी पूरा नहीं कर सकती थीं - एक विश्वस्त उपनगरीय जीवन की एहतियाती व्यवस्था, और पिता जी को अंत में मिला भी वही। पिताजी के साथ बिताए गए तीन या चार वर्षों की स्मृतियों के सहारे ही माँ ने शेष जीवन बिताया। उन दिनों की अपनी खुशहाली को माँ ऐसे सुरक्षित रखती थीं, मानो ऐसा करने से आखिरकार पिताजी अवश्य वापस आ जाते। वह उन दिनों के बारे में लगभग विस्मयपूर्वक बातें करतीं। विस्मय इसलिए नहीं कि वह सब समाप्त हो चुका था, बल्कि इसलिए, कि कभी ऐसा भी हुआ था। [quote] This translation received 4 votes and the following comment: This translation looks good in all aspects including Translation, context, and flow of language. [/quote] | Entry #488 Winner
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